Shardiya Navratri third day- यह देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं।
Shardiya Navratri third day- यह सुंदरता और बहादुरी का प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी माता को अक्सर उनके माथे पर एक अर्धचंद्र के साथ चित्रित किया जाता है, जो एक घंटी जैसा दिखता है। इस शुभ दिन पर भक्तों को दूध चढ़ाने की सलाह दी जाती है, कहा जाता है कि उनके माथे पर चंद्रमा की घंटी की ध्वनि नकारात्मकता को दूर करती है और आभा को शुद्ध करती है।
चन्द्रघंटा किसके लिए जानी जाती है-
- न्याय की स्थापना
- भक्तों को चुनौतियों से लड़ने का साहस और शक्ति प्रदान करना।
- शक्ति का एक स्रोत जो हमेशा दुष्टों को मारने और दबाने में व्यस्त रहता है।
- अपने भक्तों के लिए शांत, सौम्य और शांतिप्रिय होना।
- देवी पार्वती का विवाहित रूप होना।
- जिसके दस हाथ और तीन आँखें थीं।
- हाथों में वज्र, गदा, तलवार, तीर, धनुष, जल कलश, कमल का फूल और माला धारण किये हुए हैं।
- उसके माथे पर घंटी या घंटे के आकार का चंद्र है।
- उनका पांचवां बायां हाथ वरदान के रूप में और पांचवां दाहिना हाथ अभय के रूप में है।
Shardiya Navratri third day
आज नवरात्रि का तीसरा दिन है जिसमे देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय मैं महिषासुर की सेना को नष्ट होता देखकर सेनापति चिक्षुर देवी के साथ युद्ध करने के लिए आया और उसने देवी की बाई भुजा पर वार किया, जिससे उसकी तलवार टूटकर गिर गई और उसने भद्राकाली देवी की ओर एक त्रिशूल फेंका देवी ने उस त्रिशूल को टुकड़े कर दिए तथा असुर के प्राण भी हर लिए।
उसके मरते ही चामर नाम का दैत्य युद्ध के लिए आ गया, उसकी छोड़ी गई शक्ति को देवी ने अपनी हुंकार से तोड़ दिया तथा उनका सिंह उछलकर हाथी के मस्तक पर सवार हो गया और दैत्य या तथा सिंह दोनों लड़ते-लड़ते पृथ्वी पर गिर पड़े। तब सिंह ने अपने पंजे से चामर का सिर धड़ से अलग कर दिया क्रोध से भरी देवी ने उदग् नामक राक्षस को शिला और वृक्ष आदि की चोट से मार दिया, कराल को दांतों और मुकको से चूरण बना दिया तथा गदा के प्रहार से उद्धत दैतय को मार डाला। भिदी पाल से वाषपकल को, वाणो से ताम्र तथा अंधक को मार डाला। तीनों नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्ररासय और उग्र वीर्य तथा महाहनु नमक राक्षसों को मार गिराया।
उन्होंने अपनी तलवार से विडाल नामक दैत्य का सर काट दिया और बाणों से दूधर और दुर्मुख राक्षसों को यमलोक पहुंचा दिया ।अब महिषासुर ने अपनी सेना को नष्ट होते देखा, तो उसने भैसे का रूप धारण किया तथा अपने खुरो से बहुत से गणो को मार डाला। बहुतों को पूछ से तथा कितनो को सीगो से, दौड़ने के वेग से अनेकों को सिंहनाद से और कितनों को चक्कर देकर श्वास वायु के झोंकों से पृथ्वी पर गिरा दिया। वह द्वितीय क्रोध में भरकर धरती को खोदने लगा और सिंगो से पर्वतों को उखाड़ उखाड़ कर फेंकने लगा। उसकी पुछ से टकराकर समुद्र चारों ओर फैलने लगा और पृथ्वी क्षुबध होकर फटने लगी।
चडिका भी यह देखकर क्रोधित हो गई और उन्होंने दैत्य को बांधने के लिए पाश फेंक दिया। जिसमें बंध और जूही देवी सर काटने के लिए चली तो उसने पुरुष का रूप बना लिया। देवी ने तुरंत उसे पुरुष को उसकी तलवार ढाल सहित बिन डाला इसके बाद वह हाथी का रूप बनकर सामने आया और अपनी लंबी सूंड से देवी के सिंह को खींचने लगा देवी ने उसकी सूंड काट दी तब राक्षस ने एक बार दोबारा भैसे का रूप धारण कर लिया और पहले की तरह त्रिलोकी को व्याकुल करने लगा। इसके पश्चात क्रोध में भरी हुई देवी बारंबार उत्तम मधु का पान करने लगी और लाल लाल नेत्रों को करके हंसने लगी देवी ने बोला हे मूड जब तक मैं मधुपान कर रही हूं, तब तक तू गरज ले इसके पश्चात मेरे हाथों तेरी मृत्यु हो जाने पर देवता गरजेंगे ।
यह कहकर देवी उछलकर उस दैतय पर जा चढ़ी और उसको अपने पैर से दबाकर शूल से उसके गले पर आघात किया, देवी के पैर से दबने पर भी दैत्य अपने दूसरे रूप से मुख से बाहर होने लगा अभी वह आधा ही बाहर निकाला था कि देवी ने उसे अपने प्रभाव से रोक दिया तथा तलवार से उसका सर काट दिया। इसके पश्चात सारी राक्षस सेना हाहाकर करती हुई वहां से भाग खड़ी हुई और सब देवताओं ने मिलकर देवी की स्तुति की।